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क्यों ना देखू पायरेट फिल्म ????

teekhabol
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कल ही कि बात है, सोचा कि दीदी घर आई हुई है चलो कोई फिल्म देख कर आते है, जब ये बात दीदी को बोली तो उन्होंने कहा कि “कोई ऐसी फिल्म रिलीज़ हुई है जिस पर छ-सात सौ रुपए खर्च किए जा सके ???” सच कहू तो उस वक़्त मैं चुप हो गई ! वैसे भी इस मामले में अक्सर दीदी से डांट पड़ जाती है ! वैसे भी अब तक जितनी भी फिल्मे किसी मल्टीप्लेक्स पर जा कर देखी है उन सभी में से कुछ को छोड़ कर बाकी सभी उतने पैसे खर्च करने लायक थी नहीं ! दिल्ली में अब वैसे भी सिंगल स्क्रीन थियेटर बंद होते जा रहे है और जो अब भी बाकी है उन पर अच्छी फिल्मे रिलीज़ नहीं होती ! तो बचते है मल्टीप्लेक्स ! वैसे बचते है क्या बल्कि आज यही एक ऑप्शन है ! अब अगर दो लोग भी इन मल्टीप्लेक्स पर फिल्म देखने जाये तो उनका खर्चा कितना होगा ! अगर फस्ट शो देखने जा रहे है तो

टिकेट = 150 /- रूपये (एक के लिए)

पोपकोर्न = 75 /- रूपये (एक छोटा टब)

कोल्ड ड्रिंक = 50 /- रूपये एक गिलास ( कही-कही मूल्य ज्यादा भी होता है )

और अगर पानी की प्यास लगी तो आपको पानी भी यही से खरीदना पड़ेगा क्योकि पानी की बोतल ले जाना मना होता है !

आने-जाने का खर्चा अलग ( अब तो पेट्रोल भी महंगा हो गया है )

अगर इस खर्च को जोड़ा जाये तो 150 +75 +50 = 275 /- रूपये ये एक का खर्चा होगा

और दोनों का खर्चा होगा 275 +275 = 550 /- रुपए

अब अगर ये 550 /- रुपए किसी अच्छी फिल्म पर खर्च किए जाये तो हम खुश हो कर यही कहते है कि पैसे वसूल हो गए लेकिन अगर इतने ही पैसे कुछ ऐसी फिल्मो पर खर्च किए जाये जो देखने लायक ही ना हो तो ??? तो मैं तो यही कहती हूँ “मेहनत कि कमाई पानी में बह गई !”

जब भी कोई फिल्म रिलीज़ होती है तो उस फिल्म के निर्माता-निर्देशक सभी से यही कहते है कि हमारी फिल्म सबसे अलग है और आप सभी लोग इन्हें थियेटर में जा कर देखे ! वाकई कई फिल्म इतनी अलग होती है कि वो या तो किसी दूसरे गृह के प्राणियों को दिखाने के लिए बनाई गई हो या फिर किसी को थर्ड डिग्री देने के लिए ! ऐसी फिल्मो पर पैसे खर्च करने से तो यही अच्छा है कि मैं पायरेट फिल्म देखू या इन्हें सीधे इंटरनेट से ही डाऊनलोड कर लूँ ! हालाँकि ये दोनों ही तरीके गैरकानूनी है ! लेकिन इस तरह इन बे सिर पैर कि फिल्मो पर खर्च की जाने वाली हमारी मेहनत की कमाई तो बच ही सकेगी, क्योकि वैसे भी हमारे बोलीवुड के ज़्यादातर निर्माता-निर्देशकों की फिल्मे या तो होलीवुड से प्रेरित होती है या फिर किसी भुतिया कहानी से ! वैसे इस तरह की फिल्मो को देखने के लिए या तो पैसे वापसी की गारंटी मिलनी चाहिए या फिर टिकेट के पैसे शो ख़त्म होने के बाद लिए जाए ! लेकिन ऐसा हो नहीं सकता ! इसलिए जब तक अच्छी फिल्मे नहीं बनेंगी तब तक ये पायरेटेड फिल्मो का गोरखधंधा यूही चलता रहेगा ! फिर चाहे ये निर्माता-निर्देशक कितना भी चिल्लाये, क्योकि ना तो ये टिकेट के पैसे ही कम करते है ना ही अन्य खर्चे कम करते है ! लेकिन काम के साथ सभी को मनोरंजन भी चाहिए, लेकिन ऐसे महंगे होते मनोरंजन पर कैसे खर्च किया जाये ???

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